Skip to main content

4 Guards Over Life -जीवन के चार पहरें – (Proverbs 4:20-27)

Forthcoming in Satyadoot Magazine, Itarsi, August 2010

संसार में मनुष्य हर बहुमूल्यक बात की सुरक्षा का उपाय करता है। घर के अलमारियॉ, संदूकें, दरवाजें, एवं खिडकियॉ तालों के तले सुरक्षित पाएं जाते ही हैं, साथ ही साथ कुछ लोग अधिक सुरक्षा के लिए पहरेदारों को भी नियुक्त कर देते हैं, क्योंकि हर व्यसक्ति जानता है कि इस संसार में उसकी सुरक्षा की जिम्मेीदारी प्रथमत: उसी पर ही हैं, और यह संसार एक दुष्टक लोक है। लेकिन भौतिक वस्तुतओं से भी अधिक मूल्यंवान मनुष्या के कुछ ऐसी बातें हैं जिनकी सुरक्षा करने में यदी वह विफल हो जाएं तो वह सब कुछ खो देता हैं। इसीलिए पवित्रशास्त्रि हमे चिताता है:

हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान धरके सुन, और अपना कान मेरी बातों पर लगा। इनको अपनी आंखों की ओट न होने दे? वरन अपके मन में धारण कर। क्योंकि जिनकों वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं। सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर? क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है। टेढ़ी बात अपके मुंह से मत बोल, और चालबाजी की बातें कहना तुझ से दूर रहे। तेरी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें, और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें। अपने पांव धरने के लिये मार्ग को समथर कर, और तेरे सब मार्ग ठीक रहें। न तो दहिनी ओर मुढ़ना, और न बाईं ओर? अपने पांव को बुराई के मार्ग पर चलने से हटा ले।।(नीतिवचन 4:20-27)

इस वचन-पाठ में हम जीवन के उन चार महान पहरुओं को देखते हैं जिससे मनुष्यत मनुष्योंत और परमेश्वकर के सन्मुनख में जाना जाता है। वे चार अंग है: हृदय, मुंह, आंखें, एवं पांव। इन चारों की चौकसी का जिम्मार व्यढ़क्तिगत तौर पर हमारा ही है।

हृदय का पहरा

हृदय या मन के विषय में बताया गया है कि सब से अधिक इसी की रक्षा हमें करना हैं, क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है। दूसरे शब्दों में मनुष्यब का सब से महत्व पूर्ण अंग उस का हृदय ही है। इसके कई कारण हैं। पहले तो, हृदय की स्थिति ही मनुष्यय की स्थिति को निर्धारित करती हैं। इसलिए, नीतिवचन 12:25 कहता है किे उदास मन दब जाता है या एक व्यिक्ति को निरुत्सा हित एवं कर्महीन कर देता है, लेकिन अच्छास खबर सुनते ही वह आनंदित हो जाता है। उसी प्रकार, मनुष्यक जिस बात की आशा लगाए बैठा है, उस बात का पूरा होने में जब विलम्ब होता है तो वह शिथिल और पत्थरर समान बन जाता है, लेकिन उस आशा के पूरे होने पर ऐसा मानों उसके जी में जान आ गया हो (नीतिवचन 13:12)। फिर, हृदय ही वह अंदुरूणी कक्ष है जहा पर मनुष्यब का चरित्र का निर्माण होता है। यीशु मसीह ने कहा कि भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डायर से भली बातें निकालता है, और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डा र से बुरी बातें निकालता है? क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुंह पर आता है'' (लूका 6:45)। हम अपने हृदय में जिन विचारों और कार्यों को पनपने देते हैं, वे ही हमारे जीवन के निर्धारक बन जाते हैं। जब मनुष्य। असावधान होकर बुराई को अपने हृदय में जड पकडने दे देता है तो उसके हृदय से "बुरी बुरी चिन्ता, व्यभिचार...चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टरता, छल, लुचपन, कुदृष्टिज, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता ... निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं’’ (मरकुस 7:21;23)। लेकिन जो पवित्र बाइबिल के वचनों को दिल पर राज्यर करने देता है, उसके जीवन में प्रेम, आनन्दत, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वा स, नम्रता, और संयम नामक आत्मा का फल लग कर उसे आत्मिक और चरित्रमान बना देती है। नीतिवचन 4:21 में कहा गया है कि हमें वचनों को प्रति‍दिन धारण करना हैं। अंग्रजी का एक अनुवाद में कहा गया है कि हमें इसे दिल के मध्या में या केंद्र बिंदु पर रखना है। जब हम परमेश्वैर के वचन को अपने हृदय के मध्य में रख देते हैं तो वह हमारे सम्पूयर्ण्‍ जीवन को नियंत्रित कर हमें उन सारे वेदनाओं और दुखों से बचाता हैं जो पाप के कडवे जड से उपजते हैं।

मुंह का पहरा

याकूब 3:2 के अनुसार जो अपने जीभ पर काबू कर लेता है, वह अपने सारे शरीर पर नियं‍त्रण पा लेता हैं। जब हम जीभ को यूं ही फिसलने दे देते है, और जो मुंह आए उसे ही कह देते है तो हम अनियंत्रित और मूर्ख बन जाते हैं, क्योंनकि वचनों से मनुष्यर की बुद्धि जानी जाती है। हमारे वचन सच्चे और लाभदायक होने चाहिए। याकूब कहता है कि हमें अपने जुबान पर लगाम बांध देनी चाहिए, अर्थात हमें उसे इधर उधर भटकने से बचाना चाहिए, हमें उसे सही दिशा और निशाने पर बनाए रखना चाहिए। जिसके हृदय में ईश्वार के वचनों का मनन होता है, उसके जीभ पर ईश्वअर के कामों की प्रशंसा, स्तुअति, विश्वा स का अंगीकार, खराई, एवं सच्चाजई के वचन ही रहते हैं। जो ईश्ववर के बातों पर मन नही लगाता है, उसके वचनों में असंतुष्टि, कडुवाहट, निंदा, हिंसा, और हानी ही व्य।क्तअ होते हैं। एक गलत शब्द जीवन और गवाही को नष्टअ कर सकता हैं। वैसे एक जीवनदायक वचन किसी उजडे जीवन को बना भी सकता हैं।

आंखों का पहरा

आंखों के विषय में यह पाठ भाग हमें दो बातें बताती है: हमारी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें, और हमारी पलकें आगे की ओर खुली रहें। साम्हाने ही की ओर लगाये रखने का अर्थ है कि हमें आगे के तरफ ही बढता चले जाना चाहिए, किसी भी मोड पे पीछे न मुडे। क्या कोई व्यंक्ति पीछे की ओर देख कर साम्हनने दौड सकता है, या नीचे की ओर देखकर पहाड की चोटी पर पहुंच सकता है? यदी हम अपने अतीत से अभी भी झूंझ रहे है तो हम कभी आगे नही बढ सकते। पौलुस कहता है कि वह पिछली बातों को भूल कर आगे की ओर बढता चला जाता है (फिलि 3:13)। यदी हम अतीत की ओर अपनी आंखें लगा देते है तो हम उसके चपेट में फंस जाते है। परमेश्वतर हमें प्रति दिन एक नई सुबह देता है ताकि हम उन पुरानी पाप की बातों से बहुत दूर निकलते चले जाएं। प्रभु में जितना हम आगे बढते जाते है, उतना ही हम पाप से दूर होते जाते है। लेकिन यदि कोई जाल हमें आज भी फंसाए रखा हैं, तो जान जाएं की परमेश्व र हमें उसमे से छुडाने का सामर्थ रखता है। तो क्योंज न हम इस छुटकारे के सौभाग्यि और आाशीष में अपने दिन बढाते जाएं। केवल इतना करना है: विश्वाैस से ठान लें कि आप पुरानी बातों को त्यािग कर यीशु मसीह द्वारा दिया गया नया जीवन को धारण कर लेंगे।

हमारे पलक झपकने न पाएं, क्योंगकि शत्रु शैतान इस ताक में रहता है कि कही हमारा ध्यालन हटे और वह हमें निगल ले जाएं। हमें सदा सतर्क रहना चाहिए। हमें बुद्धिमान व्य क्ति के समान संसार में बडी सचेत्ताध के साथ दिन गुजारना है (इफि 5:14-16)। हम सांसारिक लालच की बातों की तरफ नही परंतु परमेश्वदर के पवित्र बुलाहट पर अपना ध्या(न लगाए रखें। और स्मनरण रखें की आंखों की ज्योकती परमेश्व र का वचन है (मत्ति 6:22,23; भजन 119:130)। इसलिए उसके वचन रूपी दिये को हमेशा अपने निकट रखें, ऐसा न हो किे हम इस अंधकार के लोक में अचानक अपने आप को बेसहारा और लक्ष्यउहीन या दिशाहीन पा जाएं; हमें उसके वचन को हमारी स्‍मृती के उच्चअतम सिरे पर रखना चाहिए (2‍पत 1:19)।

पावों का पहरा

अपने पावों का पहरा रखना हमारा चाल चलन, संगति, एवं प्रगति की चौकसी को दर्शाती है।

संसार में कई गलत शिक्षाएं एवं प्रलोभन हैं जो हमारे पावों तले जमीन को खिसका सकते हैं। लेकिन जो प्रभु के विश्वामस एवं बल पे खडा रहता है, वह कभी हिलने वाला नही (इफि 4:14;16)। बाइबिल हमारा मार्गदर्शक एवं नक्षा बन जाएं; वही हमारे पावों के लिए दीपक और मार्गों के लिए उजियाला बने। हमारा व्य वहार, वाक, एवं व्यषक्त्तिव ईश्वहर की इच्छाप अनुरूप ही रहे।

कभी गलती से भी गलत और बुराई को फैलाने वालों की संगति में अपने पांव जानें न दें। बुरी संगति का बुरा ही प्रभाव होता है। बलकि बुराई से दूर जो भागता है, वह अपना प्राण बचा लेता है (नीति 1:15)। फिर यह भी आवश्यवक है कि बुरी शिक्षा या प्रभाव फैलाने वालों के पॅर अपने घर पर पडने न पाएं (2यूहन्ना1:10,11)।

यदि हम इन महत्वहपूर्ण अंगों की सुरक्षा एवं चौकसी करने में सफल रहें, तो ईश्वपर की ही मदद से हम प्रगति, प्रभाव, और प्रतिफल का अनुभव पाने वालों में होंगे।

डॉमेनिक मरबनयंग, जुलाई 2010

© Domenic Marbaniang, July 2010

Comments

Popular posts from this blog

Placebo and the Philosophy of Mind and Matter in Drug Research

A placebo is a non-therapeutic substance administered under the camouflage of medication to deceive patients into believing that they are receiving medications; this done solely for psychological and not for physiological effects. Placebo may usually be used to compare its effects with the effects of other drugs in drug research. Let's take the case of an experiment that tries to establish whether a particular drug, say to treat weariness, is genuine or merely has the effects of a placebo. Suppose 20 candidates are chosen for this experiment. 10 are given the drug and the rest are put on a placebo while they are told that the placebo is a genuine medication. They need to make sure that the deception is well carried on for the success of the experiment. If both the groups make similar improvements after taking the treatments, the new drug seems to only function as a placebo in effect. The basic hypothesis of the placebo raises the question of mind over matter. Of course, this pushes...

This is My Father's World - Hymn (w/ Hindi Translation)

ENGLISH This is my father's world And to my listening ears All nature sings, and round me rings The music of the spheres This is my father's world The birds their carols raise The morning light, the lily white Declare their maker's praise This is my father's world I rest me in the thought Of rocks and trees, of skies and seas His hand the wonders wrought This is my father's world Oh, let me never forget That though the wrong seems oft so strong God is the ruler yet This is my father's world Why should my heart be sad? The Lord is king, let the heavens ring God reigns, let the earth be glad This is my father's world He shines in all that's fair In the rustling grass, I hear him pass He speaks to me everywhere In the rustling grass, I hear him pass He speaks to me everywhere HINDI ये मेरा पिता का जहां और मेरे सुनते कानों में सारी कुदरत गाती झूमती है सरगम वो रचना की ये मेरा पिता का जहां पक्षियां भी गाती है सुबह का तेज, और सोसन श्‍वेत उसकी महिमा सुनाते है ये...

3 Facts About Temptation

M...L...S 1. Temptation is MOMENTARY. It won't last forever. The devil tries to make it look as the final reality. But, it is not. It is just a test, and it'll be over; but, the question is whether you'll pass it. 2. Temptation is a Test of LOVE; and LOVE is an action. Love fulfills all the commandments. The two greatest are LOVE GOD with all your being and LOVE YOUR NEIGHBOR as yourself. But, love is not a feeling or emotion; it is an action. We need to LOVE Him more in the moment of temptation; it can only be possible when we focus on Him. 3. Temptation will make you STRONGER and PURER. It may stretch your muscle; but, not beyond your capacity; and then the HELPER, our TRAINER is there with us and knows what will make us stronger... Despite all this, let us never forget to pray: "Lead us not into temptation, but deliver us from the evil one!"