1. अकसर यह स्पष्ट रहता है। परन्तु यदी संदेह है तो सतर्कता की आवश्यकता है, क्योंकि जो कुछ विश्वास अनुसार नही वह पाप है। (Rom.14:23)
2. अकसर लक्ष्य तो नेक होता है परन्तु जरिये सही नही होते (Jer.48:10).
3. यदी कोई अवसर हमें परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने का प्रलोभन देती है तो वह प्रलाभन है, अवसर नही (James 1:13).
4. यह परमेश्वर की परीक्षा करने का कर्म नही होना चाहिए। यह सोचना की मै छलांग लगाता हूँ, परमेश्वर तो संभाल ही लेगा, ईश्वर की परीक्षा लेने की मनोभावना है (Matt.4:6,7).
5. यह किसी मनुष्य के विचार, यहा तक की भविष्यवाणी पर भी आधारित नही होना चाहिये। याद रखें की पुराने नियम में एक नबी ऐसी ही गलती करके विनाश का पथ चुन लिया (1Kgs.13:16-24). पौलुस से हम सीख सकते है। जब उसने परमेश्वर से बुलाहट प्राप्त की तो मनुष्यों का राय नही चाहा (Gal.1:16).
6. यह अभिलाषा द्वारा चलाया जाने वाला नही होना चाहिए (James 1:14,15).
7. यह परमेश्वर के दासों के आंखों में धूल झोंक कर काम करने का मार्ग नहीं होना चाहिए (Heb.13:17; Acts 5:3,4, 9,10).
2. अकसर लक्ष्य तो नेक होता है परन्तु जरिये सही नही होते (Jer.48:10).
3. यदी कोई अवसर हमें परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने का प्रलोभन देती है तो वह प्रलाभन है, अवसर नही (James 1:13).
4. यह परमेश्वर की परीक्षा करने का कर्म नही होना चाहिए। यह सोचना की मै छलांग लगाता हूँ, परमेश्वर तो संभाल ही लेगा, ईश्वर की परीक्षा लेने की मनोभावना है (Matt.4:6,7).
5. यह किसी मनुष्य के विचार, यहा तक की भविष्यवाणी पर भी आधारित नही होना चाहिये। याद रखें की पुराने नियम में एक नबी ऐसी ही गलती करके विनाश का पथ चुन लिया (1Kgs.13:16-24). पौलुस से हम सीख सकते है। जब उसने परमेश्वर से बुलाहट प्राप्त की तो मनुष्यों का राय नही चाहा (Gal.1:16).
6. यह अभिलाषा द्वारा चलाया जाने वाला नही होना चाहिए (James 1:14,15).
7. यह परमेश्वर के दासों के आंखों में धूल झोंक कर काम करने का मार्ग नहीं होना चाहिए (Heb.13:17; Acts 5:3,4, 9,10).
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